पितृ हमारे वह पूर्वज हैं जो पूर्व के समयों में हमारे कुल -खानदान -वंश -गोत्र में जन्म ले चुके होते हैं |कुछ पूर्वजों की जल्दी मुक्ति हो जाती है किन्तु कुछ लोगों की मुक्ति में हजारों वर्ष भी लग जाते हैं |मुक्ति की प्रक्रिया उनके कर्म ,मृत्यु के समय शारीरिक स्थिति आदि पर निर्भर करती है |जब तक उनकी मुक्ति नहीं होती वह पितृ लोक में रहते हैं और उन सम्बन्ध हमारे साथ बना रहता है |इनमे कुछ सामान्य मृत्यु को प्राप्त आत्माएं होती हैं तो कुछ असमय मृत्यु को प्राप्त आत्माएं |खानदान की असमय मृत्यु प्राप्त आत्माएं हजारों वर्ष तक प्रेत लोक में रहती हैं और यह भी पितृ में ही गिनी जाती हैं |यह अतृप्त होती हैं और अधिक प्रतिक्रिया भी करती हैं |व्यक्ति विभिन्न जन्मों में जिस प्रकार के कर्म करता है ,जैसा जिसके साथ व्यवहार करता है ,जैसा श्राप ,आशीर्वाद ग्रहण करता है ,वैसी उर्जा उसके सूक्ष्मशरीर के साथ जुडती जाती है और यह संचित कर्म बनती है ,जिसे भुगतना ही होता है |परिवार -कुल -खानदान के प्रति किये गए कर्म अगले जन्मों में पित्र दोष के रूप में सामने आते हैं तथा व्यक्ति ऐसे योगों में ,ग्रह स्थितियों में जन्म लेता है की कुंडली पित्र दोष व्यक्त करती है |जरुरी नहीं की यह पित्र दोष आज के ही जन्म अनुसार खानदान से सम्बन्धित हो ,यह पूर्व के विभिन्न कुलों से सम्मबंधित भी हो सकता है किन्तु यह आज की कुंडली में पित्र दोष दिखाता है |
आज के खानदान में जन्म के बाद भी पित्र दोष का प्रभाव भुगतना पड़ जाता है जब उस खानदान में अकाल मृत्यु प्राप्त आत्माएं हों या हो जाएँ |इनका प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है और कुंडली में यह दृष्टिगत नहीं होता |जिस खानदान में व्यक्ति जन्म लेता है वहां के पित्र तो प्रभावित करते ही हैं पूर्व जन्मों के खानदान के पित्र भी उनके साथ जुड़ किये गए कर्मों के अनुसार परिणाम ,प्रभाव देते हैं |कभी कभी ऐसा भी होता है की आज के खानदान में गया श्राद्ध ,नाशिक या हरिद्वार श्राद्ध आदि की प्रक्रियाएं कर देने पर भी पित्र दोष के प्रभाव समाप्त नहीं होते |कारण यह होता है की आज के खानदान के पित्र तो जो भी उस समय तक होते हैं श्राद्ध होने पर खानदान से श्राद्ध तीर्थ पर चले जाते हैं किन्तु जो पूर्व जन्मों के पित्र हैं वह प्रत्यक्ष प्रभाव देते रहते हैं |आज के पित्र भी तीर्थ स्थल पर जाकर भी पित्र लोक में रहते हुए व्यक्ति और खानदान से जुड़े रहते हैं तथा अप्रत्यक्ष रूप से कर्मानुसार व्यक्तियों को प्रभावित करते रहते हैं |इनके आशीर्वाद ,श्राप से व्यक्तियों की स्थितियां प्रभावित होती हैं |
पितृ दोष उत्पन्न करने वाले दो प्रकार के पित्र होते हैं |अतृप्त पित्र अर्थात अपनी शारीरिक आयु पूर्ण न कर पाने वाले पित्र और निर्लिप्त पित्र अर्थात पूर्णायु प्राप्त कर सामान्य मृत्यु को प्राप्त पित्र आत्माएं |
पूर्णायु पूर्ण न करने वाले अर्थात अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण, परिजनों की अतृप्त इच्छाएं ,इन अतृप्त पितरों की संतुष्टि -शान्ति -मुक्ति के लिए कोई प्रयास न करना ,जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होना ,विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय ,पितरों को मुख्य अवसरों पर याद भी न करना ,श्राद्ध आदि कर्म न करना आदि के साथ परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं , परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं|इस प्रकार के पित्र केवल श्राप ही नहीं देते ,सीधे परिवार और व्यक्ति को प्रभावित भी करते हैं और इनकी प्रतिक्रिया तीव्र होती है |यह खुद असंतुष्ट होने के कारण परिवारियों को संतुष्ट सुखी नहीं रहने देते और इनके साथ जुडी अन्य बाहरी आत्माए जब परिवार का शोषण करती हैं तो यह कोई प्रतिक्रिया नहीं देते |
पूर्णायु प्राप्त कर शरीर त्याग करने वाले अर्थात उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते , परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति- रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर ,अथवा पारिवारिक या कुल की मर्यादा के विरुद्ध आचरण होने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं | इनकी प्रतिक्रिया अंतरजातीय विवाहों ,कुल के संस्कार विरुद्ध आचरण ,कुलदेवता /देवी के अपमान ,किसी अन्य शक्ति को कुलदेवता /देवी के स्थान पर पूजे जाने पर यह प्रतिक्रया देते हैं और पित्र दोष उत्पन्न करते हैं |परिवार -खानदान अथवा व्यक्ति द्वारा किसी प्रेत शक्ति ,शहीद -मजार ,पिशाच ,ब्रह्म ,सती जैसी आत्मिक शक्तियों को पूजने पर भी यह प्रतिक्रिया करते हैं और श्राप देते हैं |इनके द्वारा उत्पन्न पित्र दोष अधिक स्थायी और कई पीढ़ियों को प्रभावित करने वाला होता है |
पित्र दोष के प्रभाव से उत्पन्न समस्याएं
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=> मानसिक अवसाद होता है ,चिंताएं घेरे रहती हैं |
=> व्यापार में नुक्सान होता है ,सबकुछ ठीक लगने पर भी उपयुक्त आय नहीं होती |अनायास हानि हो जाती है |धोखा मिलता है |कर्मचारी /सहयोगी स्वार्थी हो जाते हैं |
=> परिश्रम के अनुसार फल नहीं मिलता ,उन्नति के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं |सभी प्रकार की योग्यता ,क्षमता होने पर भी उपयुक्त उन्नति नहीं होती |
=> वैवाहिक जीवन में समस्याएं,अथवा विवाह न होना ,विवाह बाद भी अलगाव हो जाना ,जीवनसाथी के साथ कलहपूर्ण जीवन होना ,बिन बात के झगड़े उत्पन्न होना होता है |
=> कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है |परिस्थितियां अनुकूल होने पर भी काम नहीं बनता |
=> पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते, कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए , उसका शुभ फल नहीं मिल पाता|
=> आय -व्यय में सदैव असंतुलन बना रहता है |
=> प्रत्यक्ष खाने वाले ४ होने पर भी खर्च १० लोगों के बराबर होता है |
=> यह तो दीखता है की इतना आय हुआ ,पर कहाँ गया यह समझ में नहीं आता |
=> बचत कम हो जाती है या समाप्त हो जाती है या होती ही नहीं |समझ में नहीं आता की आने वाला रुपया जा कहाँ रहा है जबकि परिवार लायक पर्याप्त आय होती है |