विष्णुपद – गया – श्राद्ध द्वारा निश्चित रूप से पितरों को मुक्ति मिलती है । ऐसा चमत्कार देश के अन्य तीर्थों में नहीं है । यही कारण है कि देश – विदेश से लोग अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए यहाँ पहुँचते हैं । पित्रपक्ष में ऐसी कुछ खास वैज्ञानिक एवं भौगोलिक परिस्थितियां बनती हैं कि श्राद्ध कर्ता तथा पितृजन सभी लाभान्वित होते हैं ।
शोध – ग्रंथ ” Pilgrimage Geography of Greater Gaya ” में गया की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार बताई है :
गया नगर : – 24° 25′ 16″ से 24° 50′ 30″ उत्तरी अक्षांश एवं 84° 57′ 58″ से 85° 3′ 18″ पूर्वी देशांतर रेखाओं के बीच अवस्थिति है ।
वृहद् गया की स्थिति 24°23′ से 25°14′ उत्तरी अक्षांश एवं 84°18’30” से 85°38′ पूर्वी देशांतर रेखाओं के बीच है ।
गया के भौगोलिक परिस्थितियों के बारे में डा• राधा नन्द सिंह एवं विद्वान प्रोफेसर लक्ष्मीश्वर झा जी कहते हैं : –
” गया में अक्षांश और देशांतर दोनो रेखाएं गुजरती हैं । इन रेखाओं का सीधा संबंध भगवान् सूर्य के साथ है । भगवान् सूर्य के ही 12 नामों में से अंतिम नाम विष्णु है । जहाँ अक्षांश और देशांतर रेखाएं मिलती हैं , वहां विष्णुपदी बन जाती है । विष्णुपदी से अभिप्राय वह केन्द्र विंदू है , जहाँ दोनो रेखाएं मिलती हैं । विष्णुपदी एक वृत्त बन जाती है , जिसे 360 अंशों में विभाजन कर सूर्य एवं उसकी गति को निश्चित किया जाता है । प्रात: कालीन सूर्य सविता एवं पृथ्वी को अमृत प्राण देते हुए एक धक्का देता है और सायं कालीन आदित्य पृथ्वी के प्राणों का आहरण करता है। उससे पृथ्वी को आकर्षण शक्ति के कारण धक्का लगता है । इन दोनो धक्कों के कारण पृथ्वी अपने क्रांति वृत्त पर घूमने लगती है और सूर्य की परिक्रमा करना प्रारंभ कर देती है, जो आज भी चल रही है ; क्योंकि भगवान् सूर्य सविता और आदित्य के रुप में प्रतिदिन इसे गतिशील बनाते हैं ।
पृथ्वी और सूर्य की गति के कारण जहाँ सूर्य लोक से प्राण तत्व जीव यहाँ आते हैं , वहाँ पृथ्वी से जीव पुन: सूर्यलोक पहुंचते हैं । मध्यस्थ चंद्रलोक एक सेतू का काम करता है । जहाँ विष्णुपदी होती है , वहाँ 360 भागों में विभक्त एक वृत्त होता है या बन जाता है , जो जीवों को क्षिप्रगति से सूर्य लोक की ओर आकर्षित कर लेता है । फलत: जीव सूर्य , चंद्र और पृथ्वी की गति के साथ स्वर्गलोक या विष्णुलोक पहुंच जाता है । यही कार्य गया – श्राद्ध करता है । एक ओर श्राद्ध कर्म जहाँ जीवों के बंधनों को खोल कर प्रेतत्व से विमुक्त करता है , वहीं दूसरी ओर विष्णुपदी जीवों को स्वर्गलोक भेजने में सक्षम होकर सहायता प्रदान करती है । इस प्रकार पितृपक्ष का पारलौकिक एवं भौगोलिक विवेचन अत्यंत रहस्यमय है । “